John Rawls's Theory of Justice - जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत

John Rawls's introduction (जॉन रॉल्स का परिचय) -


जॉन रॉल्स बीसवीं सदी के महान एक नैतिक विचारक और अमेरिकी उदारवादी दार्शनिक थे। जिनका जन्म बाल्टीमोर, मेरीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका में 21 फरवरी, 1921 में हुआ था। बाल्टीमोर नगर और मैरीलैंड संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रांत हैं। इनकी मृत्यु लगभग 81 वर्ष की उम्र में 24 नवंबर, 2002 को हुई थी। इन्होंने 1971 में अपनी एक पुस्तक प्रकाशित की। जिसका नाम 'A Theory Of Justice' था। इनका पूरा नाम 'John Bordley Rawls' था। इस महानतम उदारवादी अमेरिकी दार्शनिक का नाम प्लेटो, एक्विनॉस, कॉण्ट, कार्ल मार्क्स व मैक्यावली के समकझ लिया जाता है। रॉल्स विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। अपने को स्थापित करने के लिए पहले अपने विचारों को पत्र-पत्रिकाओं में छपवाया करते थे। इन्हीं पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से रॉल्स अपने को एक बुद्धिजीवी होने का परिचय दिया जो अनुकरणीय भी है। रॉल्स एक दार्शनिक व राजनीतिक सिद्धांतशास्त्री थे। जिनकी शिक्षा 'प्रिंस्टन' विश्वविद्यालय में पूरी हुई थी। इन्होंने 1950 में पी॰ एचडी॰ की उपाधि प्राप्त की थी। 1950 से 1960 के बीच इन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया था। 1962 में प्रोफेसर बनकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी चले गए। वहांँ 40 वर्षों तक अध्यापन कार्य किए। इस दौरान कई अपनी रचना प्रकाशित किया। जिनमें 'A Theory Of Justice' (1971), 'Political Liberalism' (1993), 'The Law Of Peoples' (1999) तथा 'Lectures On The History Of Moral Philosophy' (2000) अधिक प्रचलित व प्रमुख था। 

रॉल्स द्वारा चार रचनाएंँ प्रकाशित हुई। रॉल्स पर दो प्रमुख पुस्तकें लिखी गई। इनके शोध लेख चार प्रकाशित हो चुके हैं। इनसे संबंधित सामान्य सात पुस्तकें और भी प्रकाशित हो चुकी हैं। रॉल्स की कई पुस्तकों में सबसे अधिक 'A Theory Of Justice' ख्याति प्राप्त की। रॉल्स अपने अंतिम क्षणों तक केवल न्याय के सिद्धांत के बारे में ही लिखते रहे। लेकिन 24 नवंबर, 2002 को सामाजिक न्याय के मसीहा के रूप में अवतार लेने वाले दर्शनिक व राजनीतिक सिद्धांतशास्त्री जॉन रॉल्स की जीवन ज्योति बुझ गई। लेकिन रॉल्स के विचार आज भी राजनीतिक चिंतन के क्षितिज पर जगमगा रहा हैं।


John Rawls's Theory of Justice (जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत) -


रॉल्स ने अपना संपूर्ण जीवन न्याय-सिद्धांत की स्थापना में  खपा दिये। वे अपने न्याय-सिद्धांत को खड़ा करने के लिए अपने पूर्व के विचारकों के विचारों को अध्ययन करने का प्रयास किया। वे अरस्तु, जॉन लॉक और जैक जीन रूसों जैसे महान विचारकों के रचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने 'कॉण्ट' को भी पढ़ा। लेकिन समझौतावादी रूसो का प्रभाव अधिक दिखा। उनके कई अन्य विचारकों को पढ़ने का उद्देश्य था कि अपने न्याय-सिद्धांत को मजबूत करना। रॉल्स ने अपने सिद्धांत को समझौतावादियों के विचारों पर आधारित करते हुए, उपयोगितावादियों के विचारों का खंडन किया। उन्होंने अपने न्याय-सिद्धांत को नैतिक आधार प्रदान करते हुए 'कॉण्ट' के विचार को स्वीकार किया। कॉण्ट के नैतिक विचार का सहारा लेकर उपयोगितावाद का प्रभावी विकल्प पेश करनेे की कोशिश की। रॉल्स ने अपने न्याय-सिद्धांत को सबल बनाने के लिए अपने समकक्ष विचारकों केेे विचारों का भी अध्ययन किया था। 

   रॉल्स अपने न्याय-सिद्धांत को सबल क्यों बनाना चाहते थे? वह कौन-सी परिस्थितियांँ थी, जो उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रही थी?

   1950 व 1960 के दशक में कई विद्वानों द्वारा शंका व्यक्त की जाने लगी थी। कि 'राजनीतिक सिद्धांत' ही समाप्त हो गया हैं। एक विद्वान इसैया बर्लिन ने 1961 में यहांँ तक कहा कि अमेरिका और इंग्लैंड में यह मान्यता बनने लगी कि 'राजनीतिक सिद्धांत व दर्शन' की मृत्यु हो गई हैं। ऐसी मान्यता बनने का मूल कारण था कि 20वीं शताब्दी में 'राजनीतिक दर्शन' में कोई गंभीर रचना प्रकाशित नहीं हुई। लेकिन इस धारणा को जॉन रॉल्स ने 1971 में अपनी पुस्तक 'A Theory Of Justice' के प्रकाशन से तोड़ा और राजनीतिक चिंतन के पुनर्योदय का जनक होने का गौरव प्राप्त किये। 

   रॉल्स सामाजिक विषमता का उन्मूलन चाहते थे। इसी सामाजिक विषमता के उन्मूलन खातिर सामाजिक न्याय की वकालत करते थे। इसी को इसके मुकाम तक पहुंचाने के लिए रॉल्स ने 'A Theory Of Justice' में विस्तृत व्याख्या किया हैं। जिससे हम नीचे अध्ययन करेंगे–

रॉल्स के न्याय-सिद्धांत की अवधारणा राजनीतिक दर्शन की एक महत्वपूर्ण अवधारणा हैं। रॉल्स ने इसे नए ढंग से प्रस्तुत किया। वैसे तो न्याय की समस्या का इतिहास बहुत पुराना है। लेकिन हर काल में न्याय की मांग होती रही है। लोग हमेशा से और हर काल में अपने सामाजिक जीवन को लेकर चिंतित रहते हैं। वे चाहते हैं कि सामाजिक जीवन विषमता रहित हो, किसी प्रकार भेदभाव सामाजिक स्तर पर न हो। इसी सामाजिक विषमता का उन्मूलन रॉल्स चाहते हैं। इसी सामाजिक विषमता का उन्मूलन के लिए जिस न्याय-सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उसमें उन्हे ख्याति भी मिली। जिसका वर्णन अपनी पुस्तक  'A Theory Of Justice' में किया।

   रॉल्स का न्याय-सिद्धांत 'समाज के विभिन्न वर्गों, व्यक्तियों और समूह के बीच विभिन्न वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, लाभों आदि को आवंटित करने का नैतिक व न्यायसंगत आधार क्या हो' पर आधारित हैं। इस समस्या को हल करने के लिए कई चिंतकों ने अपने-अपने ढंग से विचारों का प्रतिपादन किया हैं। उन्हीं विचारकों व चिंतकों में से एक जॉन रॉल्स भी हैं। रॉबर्ट एमडूर ने कहा है कि रॉल्स का उद्देश्य ऐसेेे सिद्धांत विकसित करना है जो हमें समाज के मूल ढांचे को समझनेेे में मदद करें।

    रॉल्स ने अपने न्याय-सिद्धांत को प्रस्तुत करते हुए सबसे पहले उपयोगितावादी विचारों का खंडन किया और अपने न्याय-सिद्धांत को प्रकार्यात्मक आधार प्रदान किए। रॉल्स ने न्यास को उचितता के रूप में परिभाषित करके न्याय-सिद्धांत की परंपरागत समझौतावादी अवधारणा को उच्च स्तर पर मूर्त रूप प्रदान किये। रॉल्स ने न्यास की समस्या का ध्यान में रखते हुए, पाया कि प्राथमिक वस्तुओं और सेवाओं के न्यायपूर्ण व उचित वितरण की समस्या हैं। ये प्राथमिक वस्तुएँ-अधिकार और स्वतंत्रताएँ, शक्तियांँ व अवसर, आय और संपत्ति तथा आत्म सम्मान के साधन हैं। रॉल्स ने इन्हें शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय का नाम दिया हैं। रॉल्स का मानना है कि जब तक वस्तुओं और सेवाओं आदि प्राथमिक वस्तुओं का न्यायपूर्ण वितरण नहीं होगा तब तक सामाजिक न्याय की कल्पना करना व्यर्थ हैं।

जेरेमी बेंथम के उपयोगितावाद का सिद्धांत 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' (Greatest Happiness Of The Greatest Number) की बात करता है। बेंथम के इस विचार के संबंध में जॉन रॉल्स का कहना है कि यह सिद्धांत प्राथमिक वस्तुओं के न्यायपूर्ण वितरण में बाधा डालता हैं। बेंथम अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख पहचानने के चक्कर में यह बताना भूल जाते हैं कि इससे व्यक्ति विशेष को कितनी हानि हो रही है। अतः बेंथम के इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा कि "सुखी लोगों के सुख को कितना भी क्यों न बढ़ा दिया जाय, उससे दुखी लोगों के दुख का हिसाब बराबर नहीं किया जा सकता।" रॉल्स ने उपयोगितावादी सिद्धांत का खंडन करके उसके स्थान पर 'न्याय उचितता के रूप में' का सिद्धांत प्रस्तुत किया। रॉल्स का मानना है कि 'बेंथम' के सिद्धांत में अल्पसंख्यकों के दावे को बहुमत द्वारा कुचल दिया जाता है। बहुसंख्यक की खुशी के लिए किसी अन्य की स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकते। रॉल्स विचार है कि हमें प्राथमिकता के नियमों का ही अनुकरण करना चाहिए। क्योंकि दबे-कुचले लोग प्राथमिक संसाधनों की कमी से कम, पर दमनात्मक शासन के द्वारा अधिक दबाये जाते हैं। इसलिए व्यवस्था परिवर्तन उनके भविष्य को बदलने के लिए आवश्यक हो जाता हैं।

दूसरी ओर रॉल्स ने अपने न्याय-सिद्धांत को समझौतावादी विचारों पर आधारित किया है। इसी कारण रॉल्स के न्याय-सिद्धांत को समझौतावादी न्याय-सिद्धांत भी कहा जाता हैं। उनका मानना है कि परंपरागत उपयोगितावादी सिद्धांत का सर्वोत्तम विकल्प सामाजिक समझौतावादी सिद्धांत ही हैं। क्योंकि यह समझौता युक्त तथा स्वतंत्र व्यक्तियों के बीच सहमति पर आधारित होता है इसमें स्त्री-पुरुष एक सामाजिक समझौता करने के लिए एक साथ मिलते हैं। रॉल्स की सहमति 'समानता की मूल स्थिति' पर आधारित है। इसमें व्यक्ति विवेकी तथा समानता के सिद्धांत पर जीवन संचालित करने वाले होते हैं। जबकि समझौतावादी हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था का व्यक्ति असम्य या जंगली थे। यहांँ रॉल्स मूल स्थिति पर बल देते हैं। यह स्थिति ही न्याय के निष्पक्ष सिद्धांतों के निर्माण में सहायक हो सकती हैं। क्योंकि इसमें पूर्वाग्रहों से लैस होने के कारण, कोई भी सौदेबाजी या समझौता नहीं कर सकते हैं। इस तरह रॉल्स ने मूल स्थिति के विचार की कल्पना करके ही न्याय को 'न्याय उचितता के रूप में' स्वीकार किये हैं। 'न्याय उचितता' के यही सद्गुण सामाजिक संस्थाओं के व्यवहार की प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि सामाजिक न्याय को उसके उद्देश्यों तक पहुंँचाया जा सके।

जॉन रॉल्स ने अपने न्याय-सिद्धांत में दो नियमों का सहारा लिया हैं-

  •  प्रत्येक व्यक्ति को सर्वाधिक मूल स्वतंत्रता का समान अधिकार हो और यही अधिकार दूसरों को भी हो।
  •  सामाजिक तथा आर्थिक विषमताओं को इस रूप में व्यवस्थित करना चाहिए कि न्यूनतम सुविधा प्राप्त व्यक्तियों को सर्वाधिक लाभ मिले और ये विषमताएंँ इस प्रकार व्यवस्थित हो कि अवसर को उचित समानता के तहत सभी के लिए पद और स्थितियांँ खुली हो।

    उक्त दोनों सिद्धांतों का आशय है कि संपत्ति और सत्ता की विषमताओं को ऐसे व्यावहारिक किया जाए कि वह प्रथम सिद्धांत के तहत वांछित समान स्वतंत्रता के अनुरूप में हो। लेकिन जब समाज सम्पन्नता का वांछित स्तर भी प्राप्त कर ले तब भी उन लोगों को अपनी अधिक से अधिक सामान स्वतंत्रताओं को बनाए रखना होगा जो समाज से सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। रॉल्स ने प्रथम सिद्धांत को द्वितीय सिद्धांत की तुलना में अधिक वरीयता दी है। इसका कारण यह है कि 'सम्पन्नता' के एक स्तर के नीचे लोग अपनी स्वतंत्रता का प्रभावी प्रयोग नहीं कर सकते। लेकिन वह स्तर प्राप्त कर लेने के बाद भी लोग सामाजिक व आर्थिक वस्तुओं की तुलना में स्वतंत्रता को भी महत्व देते हैं। साथ-ही-साथ आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक अभिरुचियों व राजनीतिक सहभागिता को महत्व भी देने लगते हैं। उनका मानना है कि स्वतंत्रता आत्म-सम्मान को भी प्राप्त करने में सहयोग करती हैं।

    रॉल्स के सामाजिक व राजनीतिक और समाज की परिकल्पना का आशय है कि यह एक ऐसे संवैधानिक लोकतंत्र की परिकल्पना करता है जिसमें राजनीतिक और बौद्धिक स्वतंत्रता हो, समतामूलक समाज बने। रॉल्स के न्याय-सिद्धांत में स्वतंत्रता निरंकुश नहीं हैं। लेकिन वे स्वतंत्रता  का समुचित प्रयोग अवश्य चाहते हैं। स्वतंत्रता निरंकुश नहीं हैं। पर समाज में शांति-व्यवस्था व सुरक्षा व आर्थिक रूप से पिछड़े समाजों में उच्च आर्थिक विकास के खातिर ऐसे प्रतिबंध लगाए जा सकता हैं। यह प्रतिबंध महत्वहीन भी नहीं हैं। जब हम रॉल्स के सामाजिक न्याय-सिद्धांत के अध्ययन के बाद निष्कर्ष रूप में देखते हैं तो पाते हैं कि रॉल्स की मूल मान्यता भी यही है कि राज्य व्यक्ति की मूल-स्वतंत्रताओं में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

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