What Is Socialism - समाजवाद क्या हैं?

"सोशलिज्म गिरगिट की भाँँति है जो वातावरण के अनुसार रंग बदल लेता है।"- रैम्जे म्योर

    समाजवाद शब्द अंग्रेजी के Socialism का हिंदी रूपांतरण हैं। Socialism की उत्पत्ति 'Socius' नाम शब्द से हुई है। जिसका अर्थ समाजवाद होता हैं। समाजवाद समाज-सुधार का एक विस्तृत आंदोलन है। इसमें विभिन्न विचारधाराओं का समावेश है। यह एक संपूर्ण जीवन-दर्शन है और मानव जीवन के विविध पहलू तथा सामाजिक जीवन की समस्त  विविधतायें इसके क्षेत्र में शामिल है। इसका परिवारिक, अध्यात्मिक, व्यवसायिक, धार्मिक एवंं नैतिक समस्याओं के प्रति अपना स्वतंत्र दृष्टिकोण हैै, जो वैज्ञानिक आधार पर निर्भर हैंं।

    समाजवाद के प्रति विचारकों के दृष्टिकोण में भिन्नता पाई जाती है और इसका आशय स्पष्ट करने की कोई सर्वमान्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है। इसलिए रैम्जे म्योर ने कहा कि समाजवाद गिरगिट की भांति है जो वातावरण के अनुसार रंग बदल लेता है। अर्थात समाजवाद ऐसे टोपी के समान है जो अपना रूप खो चुका है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति इसे पहन लेता हैंं।

    फिर भी समाजवाद एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है जो एक ऐसे आर्थिक कार्यक्रम का सृजन करती है जिससे व्यक्ति को अधिक-से-अधिक न्याय और स्वतंत्रता प्रदान करने की प्रबल इच्छा रखता है। यह आदमी के द्वारा आदमी का शोषण किया जाना पसंद नहीं करता है। यह उत्पत्ति एवं वितरण के सभी साधनों पर समाज के नियंत्रण को मान्यता प्रदान करता हैं। राजनीतिक आंदोलन के रूप में अगर देखा जाए तो यह धन के असमान वितरण से उत्पन्न शोषण, बेरोजगारी, निर्धनता एवं उत्पीड़न के विनाशकारी प्रभाव को नष्ट करने में विश्वास रखता हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाजवाद मनुष्य के आर्थिक कल्याण में विश्वास करता है और सभी प्रकार के व्यक्तिगत अधिकार का विरोध करके सर्वजनिक उत्पादन को प्रोत्साहन देता है। जिससे जनता में धन का असीमित और अनियंत्रित वितरण न हो सके एवं किसी भी प्रकार से नागरिकों को धनी-वर्ग के द्वारा शोषण नहीं किया जाए। अर्थात समाजवाद सम्पति पर व्यक्तिगत स्वामित्व का विरोधी है। जॉन मथाई ने कहा हैं कि – "समाजवाद जीवन की एक पद्धति और समाज के प्रति एक दृष्टिकोण हैं, जिसका लक्ष्य है ऐसे साधनों द्वारा जो एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक समाज के लिए उपयुक्त समझा जा सके, अधिकतम व्यवहारिक तथा सामाजिक न्याय का विस्तार कहा। हयूगन ने कहा कि – "समाजवाद श्रमिक वर्गों के उस राजनैतिक आंदोलन का नाम हैं जिसका उद्देश्य आर्थिक उत्पत्ति वितरण के साधनों को सामूहिक संपत्ति बनाकर, उन्हें लोकतंत्र व सार्वजनिक प्रबंध केेेेे अधीन कर शोषण का अंत कर देना हैंं।"

समाजवाद के प्रमुख उद्देश्य प्रो॰ एफ॰ जे॰ सी॰ हर्नशा के अनुसार -
  • व्यक्ति की अपेक्षा समाज का उत्थान,
  • मानवीय दशाओं का समानीकरण,
  • पूंजीवाद का उन्मूलन,
  • सामंतवाद की समाप्ति,
  • निजी पूंजी का अंत और 
  • प्रतियोगिता का निराकरण।

 समाजवाद अब शिक्षा के क्षेत्र में भी वरीयता और एकाधिकार जैसी प्रथाओं को मिटा देना चाहता है जो मनुष्य को भिन्न-भिन्न सामाजिक वर्गों में बांँटती हैंं। अर्थात वह ऐसा सब कुछ कर देना चाहता हैंं जो वर्गहीन समाज की स्थापना के लिए आवश्यक हो।

  गांँधीजी भी समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को क्रियात्मक रूप देना चाहते थे। वे ट्रस्टीशिप तथा अपरिग्रह के सिद्धांतों द्वारा आर्थिक विषमता को दूर करके सब के लिए धन का सामान वितरण करना चाहते थे। सबको उन्नति के समान अवसर देने के लिए उत्सुक थे। इस दृष्टि से गांँधीजी सच्चे समाजवादी थे। उन्होंने 'हरिजन' नया विचार प्रकट किया था कि समाजवाद का विचार नवीन नहीं है। उसका जन्म पूंजीवाद के दुरुपयोग के कारण नहीं हुआ, किंतु यह बहुत प्राचीन सिद्धांत हैं।

  अतः हम कह सकते हैं कि समाजवादी समाज उसी संस्थानिक प्रतिमान को कहेंगे जिसमें उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण किसी केंद्रीय सत्ता के पास होगा, या हम कर सकते हैं कि जिसमें सिद्धांत के रूप में समाज के आर्थिक विषय निजी क्षेत्र में नहीं बल्कि जनता के पास है। निष्कर्षतः समाजवाद को आमतौर पर व्यक्तिवाद के विरोधी रूप में जाना जाता हैंं। यह अधिकांश सम्पति पर निजी स्वामित्व की समाप्ति की मांग करता है। यह निजी सम्पति व व्यक्तिगत सम्पति को अस्वीकार करता हैंं। यह साध्यों को अपना लक्ष्य बनाता है। यह विश्व में अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध है, निर्धनों के पीसते हुए चेहरों तथा लोगो की दशाओं की भयानक असमानताओं को देखते हुए बेहतर विश्व की कामना करता हैंं। यह वर्तमान प्रतियोगी विश्व की अकुशलता, अव्यवस्था तथा अक्षमता के विरुद्ध भी प्रतिरोध है। यह स्वयं को एक  मुक्तकारी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। यह सर्वहारा को उसकी जंजीरों से मुक्त करना चाहता हैंं।

  समाजवाद को कुछ बिंदुओं पर आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ता हैं, जो निम्नलिखित हैं -

  • व्यक्तिगत पूँजी व स्वामित्व कार्य कुशलता में वृद्धि करता हैं,
  • समाजवाद राज्य को अधिक कार्य सौंप देता है जिसके कारण सही समय कार्य नहीं होता है। अतः व्यक्तिगत स्वामित्व इसे आसान कर देता है। जैसे- ठेकेदारी प्रथा,
  • राज्य के कर्मचारी तानाशाह हो जाएंगे और भ्रष्टाचार बढ़ता जाएगा,
  • मजदूरों और पूंँजीपतियों के बीच सहयोग की कमी होगी,
  • समाजवादी व्यवस्था में प्रतियोगिता का अभाव होगा, 
  • इस व्यवस्था में केंद्रीयकरण की भावना बढ़ेगी,
  • यह मानव-प्रकृति के विरुद्ध हैं और 
  • इसमें धर्म का कोई स्थान नहीं है, जबकि धर्म जीवन का केंद्र होना चाहिए।

 समाजवाद के इस आलोचना के विरुद्ध तर्क -

  • समाजवाद के प्रति की गई अधिकांश आलोचनाएंँ भ्रमपूर्ण हैं। 
  • यह वर्तमान व्यवस्था की बुराइयों का प्रभावशाली वर्णन हैं,
  • यह आज की आर्थिक अव्यवस्था का सुंदर हल हैं,
  • इसमें सम्पति का अव्यय नहीं होगा,
  • यह सभी को उन्नति का समान अवसर देगा,
  • यह भाईचारे तथा समाज सेवा भाव को बढ़ाता हैं,
  • यह एक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक विचारधारा हैंं।
 
   इस प्रकार समाजवाद आर्थिक विषमता के खाई को कम करने का एक साधन है। इस व्यवस्था से शांति व प्रगति की राह स्थापित होने की आशा दीखती है। क्योंकि विषमता के गर्व से अशांति पैदा होती हैं और अशांति प्रगति को रोकती है। इसलिए शांति और प्रगति के लिए समाजवाद आवश्यक प्रतीत होता हैंं।




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ