What is the Concept of Game Theory – गेम थ्योरी की अवधारणा क्या हैं?

आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गणितीय मान्यताओं पर कुछ प्रतिमानों का निर्माण भी किया जाता हैं। मार्टन काप्लान, शूविक तथा राइकर ने इसके आधार पर एक नए सिद्धान्त का निर्माण किया हैं, जिसे खेल सिद्धान्त (Game Theory) कहा जाता हैं। इस सिद्धान्त के संस्थापकों ने यह दावा किया है कि वे मनुष्य के संघर्षात्मक तथा प्रयोगात्मक परिस्थितियों की ऐसी योजना पेश कर सकते हैं जिसके आधार पर निर्णय-निर्माता विभिन्न परिस्थितियों में निर्णय के आधार पर रणनीति का चुनाव कर सकते हैं।

What is the Concept of Game Theory - गेम थ्योरी की अवधारणा क्या हैं?

 अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने के लिए Game Theory

का प्रयोग किया जा सकता हैं। परस्पर विरोधी राज्यों को खिलाड़ियों के दो दलों के रूप में कल्पित करके एक-दूसरे की चालों का अनुमान लगाया जा सकता हैं। इसके लिए खिलाड़ियों के कौशल, स्थिति आदि की जानकारी पहले प्राप्त कर लेना आवश्यक हैं। क्योंकि इन्हीं के आधार पर एक पक्ष दूसरे पक्ष की चाल को विफल करने का प्रयास कर सकता हैैं। उदाहरण के तौर पर यदि भारत और चीन के संभावित संघर्ष को ध्यान में रखकर इन दोनों देशों को खिलाड़ियों के दों दलों के रूप में मान लें और प्रत्येक दल एक-दूसरे की क्षमता, आर्थिक, तकनीकी, सैनिक आदि का पता लगाने के अलावा यह भी जानने का प्रयास करेगा कि अमेरिकारूस आदि विश्व के प्रमुख राष्ट्र इस विषय पर क्या दृष्टिकोण अपनाएंगे। इन राष्ट्रों से भारत या चीन को मिल सकने वाली सहायता का अनुमान करने दोनों प्रतिपक्षी अपनी-अपनी भावी राजनीति का स्वरूप निर्धारित करते हैं। यह सारा अनुमान दोनों राष्ट्र अपने सम्भावित संघर्ष को खेल का रूप दे कर करेेंगे।

    इस खेल सिद्धान्त की अपनी एक निश्चित विधि हैं जिसके आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का अध्ययन किया जाता हैं। उपयुक्त विधि की कुछ अवस्थाएंँ होती हैं, जिसे हम निम्नलिखित ढंग से देख सकते हैं :-

  • पहला चरण में यह मान लिया जाता हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में दो विरोधी शक्तियांँ विद्यमान हैं जिनकी परस्पर विरोधी नीतियों के कारण उनमें संघर्ष निश्चित हैं। यह संघर्ष ही खेल हैं।
  • जिस कारण खिलाड़ियों के दोनों दल अपनी शक्ति का विचार करके अपनी-अपनी टीम के खेल संबंधि कुछ नियम निर्धारित करते हैं उसी प्रकार दोनों विरोधी राष्ट्र भी अपनी स्थिति एवं शक्ति आदि की दृष्टि से अपने कुछ नियम निर्धारित करते हैं। उन्हें ही खेल के नियम कहा जाता हैं।
  • इसके बाद यानी तीसरे चरण में सूचना संग्रह होता हैं। अपने गुप्तचर साधनों द्वारा शत्रु राष्ट्र की अंतरिक्ष और वाह्य स्थितियों का पूरा पता लगाने का प्रयास किया जाता हैं।  
  • यह चरण रणनीति का हैं। इसमें रणनीति बनाया जाता हैं।
  • पांँचवाँ चरण मूल्यांकन से संबंधित हैं अर्थात युद्ध के बाद कुल कितना लाभ या हानि हो सकती हैं, इसका अनुमान लगाना।

   इस प्रकार इस खेल पद्धति की संघर्ष, खेल के नियम, सूचना, युद्ध-नीति तथा मूल्यांकन आदि पांंच क्रमिक अवस्थाएंँ हैं। ये सभी चरण उपर्युक्त भारत-चीन संघर्ष के उदाहरण से स्पष्ट हैं।

 खेल के प्रकार:-

  • शून्य जोड़ खेल – इसमें संघर्ष का स्वरूप निर्णायक होता हैं। इसमें एक पक्ष पूर्ण विजय और दूसरा पूर्ण विनाश प्राप्त करता हैं।
  • सत्त जोड़ खेल – इसमें प्रतिद्वंदी दूसरे को हानि पहुंँचाकर स्वयं लाभ नहीं उठाते हैं, बल्कि पारस्परिक सहयोग की भावना से प्रेरित होकर समान लाभ प्राप्त करते हैं।
  • अ-शून्य जोड़ खेल – इसकी स्थिति उपर्युक्त दोनों प्रकार केेे बीच की है जिसमें प्रतिद्वंद्वियों के बीच विरोध तथा सहयोग दोनों संभव हैं।

     दूसरी ओर मार्टिम शूविक खेलों के प्रकारों को तीन वर्गों में बांँटकर अध्ययन करता हैं जो इस प्रकार हैं :–

  • परिणाम के आधार पर खेल
  • अवधि के आधार पर खेल
  • समाधान के आधार पर खेल

 राइकर अशून्य योग खेल सिद्धांत का प्रतिपादन किया हैं। रायकर का सिद्धांत दो आधारभूत मान्यताओं को लेकर चलता हैं। उसकी पहली मान्यता मनुष्य की बौद्धिकता हैं। बौद्धिकता की परिभाषा देते हुए उसने लिखा हैैं कि विभिन्न निर्णय निर्माणक संस्थाओं के भीतर सामाजिक परिस्थितियों में ऐसेे दो विकल्पों का अस्तित्व होता जिनकेेे परिणाम आर्थिक साधन, शक्ति एवं सफलता की प्राप्ति के परिप्रेक्ष्य में भिन्न-भिन्न होतेे हैं। इन परिस्थितियों में कुछ सहयोगी उसी विकल्प का चुनाव करतेे हैं जिसमें उन्हें अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त होता हैं। ऐसे विकल्प के चयन को बौद्धिक व्यवहार कहते हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार रायकर का कहना हैं कि यद्यपि राजनीति जीवन में युद्ध तथा चुनाव  शून्य योग खेलों के उदाहरण प्रस्तुत करतेे हैं। फिर भी इन परिस्थितियों में सभी लोगों को न तो पूर्णतः लाभ प्राप्त होता हैं और न पूर्णतः लाभ से वंचित रहना पड़ता हैं। संक्षेप में, राइकर का मूल उद्देश्य यह रहा हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उन नियमों की खोज की जाए जो संगठन तथा समुदाय निर्माण में सहायक होते हैं तथा उसके निर्णयों को नियंत्रित करतेे हैं। उसने खेल सिद्धांत को कूटनीति तथा राजनीतिक युद्ध के लिए अधिक उपयुक्त माना हैं।

    खेल सिद्धांत की कुछ सीमाएं भी हैं, जिसे हम निम्नलिखित रूप में देख सकते हैं :-

  • खेल मूलतः अंत का सूचक हैं, जिसकी अपनी सीमा हैं और जो अस्थायी हैं। इसके विपरीत प्रक्रिया में निरंतरता होती हैं। परिणाम स्वरूप खेल के माध्यम से राजनीतिक प्रक्रिया का प्रतीकात्मक अध्ययन ही किया जा सकता हैं, उसकी वास्तविकता का नहीं।
  • मनुष्य के वास्तविक जीवन खासकर राजनीतिक जीवन की परिस्थितियों को खेल सिद्धांत के संचार में ढालना कठिन हैं।
  • खेल सिद्धांत कर्त्ताओं में पूर्ण बौद्धिकता की कल्पना करता हैं। राजनीतिक जीवन की कुछ परिस्थितियों में मनुष्य कर्त्ता के रूप में बौद्धिकता का सहारा ले सकता हैं, लेकिन हमेशा राजनीतिक जीवन में बौद्धिकता का सहारा लेना मुश्किल हैं।
  • खेल सिद्धांत के कमियों के विषय में शूविक ने इशारा किया हैं कि द्विपक्षीय संबंध तथा युद्ध न ही खेल हैं और न ही भाग लेने वाले खिलाड़ी मात्र, जिनका उद्देश्य मनोरंजन करना हैं। खेल व्यूह रचनाओं की भांति राजनीतिक में इतना सूक्ष्म एवं व्यापक योजना निर्माण संभव नहीं हैं।

    उपर्युक्त खेल सिद्धांत की सीमाओं के अध्ययन के बाद यह ज्ञात होता है कि इस सिद्धांत की सीमाएंँ तो बताई गयी हैं। लेकिन इसकी उपयोगिताएंँ भी हैं। इससे इंकार नहीं किया जा सकता हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के कुछ पक्षों को समझने में इसकी उपयोगिता हैं। यह सिद्धांत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की घटनाओं का विश्लेषण और विवेचन सूक्ष्मता से करता हैं। इस सिद्धांत का सर्वाधिक उपयोग इस दृष्टि से है कि यह प्रतिपक्षी द्वारा चली जा सकने वाली समस्त संभावित चालों का विचार करके उनमें से सबसे अधिक संभावित या तर्क संगत को चुनकर उसे लागू करने की प्रेरणा देता हैं। इस प्रकार यह सिद्धांत किसी राष्ट्र की विदेश नीति की संभावित दिशा का पहले से अनुमान लगाने में सहायक सिद्ध होता हैं।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *