Azadi Ka Amrit Mahotsav – आजादी का अमृत महोत्सव

“दूर ना होना अधीर ना होना,डरना न अत्याचार से।आओ मिलकर करते हैं हम सब,

देश मंथन एक नई शुरुआत से।” 

Azadi Ka Amrit Mahotsav

 हम पहले से ही तरह से खुशियों का इजहार करते रहे हैं। जैसे-रजत जयंती, स्वर्ण जयंती, हीरक जयंती, कई तरह के उत्सव, बड़ा उत्सव (महोत्सव), अमृत महोत्सवआदि।   

     आजादी का अमृत महोत्सव उन्हीं खुशियों में से एक हैं। लेकिन इसकी अवधारणा कुछ अलग हैं। अमृत अर्थात् यह एक ऐसा देवी पेय पदार्थ है जिससे मृत्यु या कष्ट से छुटकारा मिल सकता हैं। ऐसा धार्मिक दृष्टिकोण हैं। इस अमृत की चर्चा ऋषियों द्वारा पौराणिक कथा-कहानियों, वेद व उपनिषदों में भी मिलता है और महोत्सव अर्थात बड़ा उत्सव। यहांँ हमारा दृष्टिकोण कष्टों से छुटकारा दिलाने वाला बहुत बड़ा उत्सव से हैं। जैसे कई प्रकार की चीजों को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता हैं। जिसके सेवन से कई रोगों व कष्टों को दूर करता है और मन को शांति प्रदान करने वाला होता हैं।

     जाते लगभग 20,000 लोग शामिल हो गए थे। 386 किलोमीटर की यात्रा थी।

उद्देश्य–

     अंग्रेजों द्वारा इंग्लैंड से नमक आयात होता था। जिस पर भारी कर भारतीयों को चुकाना पड़ता था। जबकि नमक मानव जीवन के लिए एक आवश्यक वस्तु हैं। जिसपर भी अंग्रेजों ने भारी कर लगाकर धन कमाने की प्रवृत्ति से मुहैया करते थे। भारतीय अंग्रेजों के इस प्रकार शोषण वाली प्रवृत्ति से मानसिक रूप से कष्ट का अनुभव करते थे। यह देख गांधी जी ने नमक पर कर देने से इंकार कर दिया और स्वयं नमक बनाने का निर्णय ले लिया। चूंँकि उस वक्त भारत में भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा नमक बनाना गैर-कानूनी कार्य था। इस नमक कानून का खिलाफत करते हुए स्वयं नमक बनाने का निर्णय ले लिया गया। स्वयं भारतीयों द्वारा नमक बनाने के लिए गांँधी जी ने 78 लोगों के साथ साबरमती आश्रम से दाण्डी तक की यात्रा 12 मार्च, 1930 को शुरू कर दी। 6 अप्रैल, 1930 को दाण्डी पहुंँचकर नमक स्वयं बनाया गया। इस प्रकार गांँधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों के नमक कानून तोड़ा गया। तब भारत नमक के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। तब से अब तक भारत नमक के मामले में भारत आत्मनिर्भर हैं। 91 वर्षों से नमक के लिए भारत आत्मनिर्भर हैं।

     गांँधी जी से प्रेरणा लेते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को अमृत महोत्सव की घोषणा भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए की थी। गांँधी जी का नमक बनाना, ‘मेक इन इंडिया’ था। जब पूर्ण रूप से भारत ‘मेक इन इंडिया’ के अवधारणा को सफलतापूर्वक अपनाने में सफल होगा। तब भारत आत्मनिर्भर होगा। लेकिन भारत को आत्मनिर्भरता में वैश्वीकरण को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता हैं। क्योंकि उत्तर-आधुनिकतावाद का दौर चल रहा हैं।

     अमृत महोत्सव सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक पहलुओं से जुड़ा हुआ कार्यक्रम हैं। यह धार्मिकता से जुड़ा हुआ नहीं हैं। क्योंकि जयंती व उत्सव या बड़ा उत्सव जो राष्ट्रीय हो, सभी धर्म, जाति, वर्ग व समुदाय के लोग मिलजुल कर मनाते हैं। अर्थात् इसे धार्मिक प्रतीक से नहीं जोड़ा जा सकता। यह महोत्सव समृद्धि, यादगारी और चिन्तन के लिए हैं। आजादी के इन 75 सालों में कई बदलाव आए हैं। नई पीढ़ी आई हैं। जो 65% में 35 साल से कम के युवा हैं। यह नई पीढ़ी अकल्पनीय बदलाव लाने की और क्षमता रखती हैं। इन युवाओं को बेहतर शिक्षा, अच्छी सेहत और हाथों में हुनर दे दिया जाय तो भारत को दुनिया के शीर्ष पर पहुंँचाने से कोई नहीं रोक सकता हैं। इस महोत्सव के माध्यम से नई पीढ़ी को उन सपनों, आशाओं एवं अपेक्षाओं की याद दिलाई जायेंगी। जैसे आज हम गांँधी जी से प्रेरित होकर अमृत महोत्सव के अंतर्गत कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करके जागृति के साथ-साथ जिज्ञासा भी पैदा कर रहे हैं। इस महोत्सव के अंतर्गत आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के परिवार में जाकर उन्हें और उनके परिवार के लोगों को सम्मानित किया जा रहा हैं। बहुत ऐसे क्रांतिकारी थे। जिन्हें आज की नई पीढ़ी उन्हें नहीं जानती हैं कि देश की आजादी में उनकी क्या भूमिका थी। इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्हें भुला दिये गये क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को आस-पास के लोग उन्हें भी जानने लगे और सम्मान की दृष्टि से देखने लगे हैं। उनके और उनके परिवार के लोग आज अपने आप में गौरवान्वित महसूस करने लगे हैं। क्योंकि इस कार्यक्रम के तहत शहरी और शुरू सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में मंत्री, विधायक, नेता, समाजसेवी व कई जनप्रतिनिधि उनके घर जाकर सम्मानित कर रहे हैं। इससे अन्य लोगों में भी देश प्रेम की भावना जागृत हो रही हैं। अपने राष्ट्र के प्रति राष्ट्रीयता की भावना उत्साहपूर्ण तरीके से जागृत हो रही हैं। जिसमे जितना अधिक राष्ट्रीयता की भावना भरेंगी। वह उतना ही अधिक देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने को तैयार हो जाता हैं।

     आजादी का अमृत महोत्सव यह अवसर दे रहा है कि हम भविष्य पर निगाह रखते हुए देश की आजादी के लिए किये गये संघर्ष के गौरवशाली इतिहास को भी याद रखें। क्योंकि भविष्य के लिए इतिहास से प्रेरणा मिलती रहें। अपनी कमजोरियों को जाने और उनका आकलन कभी करें। ताकि लज्जित न होना पड़े। अपने इतिहास पर गौरवान्वित महसूस करते हुए, आगे बढ़ सके। भारतीयों को गर्व करने के लिए गौरवपूर्ण अथाह समृद्धि इतिहास हैं। इसे जानने की आवश्यकता हैं। जिसे हम अमृत महोत्सव के माध्यम से जानकारी प्राप्त भी हो रही हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी ने 12 मार्च, 2021 गुजरात के साबरमती आश्रम से अमृत महोत्सव की शुरुआत करते हुए, कहा था कि ‘किसी राष्ट्र का गौरव तभी जागृत रहता है, जब वो अपने स्वाभिमान और बलिदान की परम्पराओं को अगली पीढ़ी को भी सिखाता है, संस्कारित करता है और प्रेरित करता हैं।’ इसलिए यह आशा की जा सकती है कि यह महोत्सव नई पीढ़ी में लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति सम्मान पैदा करेगा और उनमें आजादी पाने के लिए दिए गए बलिदानों की समृति जगाते हुए समानत और न्यायमूलक समाज की रचना की प्रेरणा देगा। आजादी का अमृत महोत्सव का यह जश्न एक संदेश है कि हम जीवन से कभी पलायन न करें। जीवन को परिवर्तन दें। क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर धब्बा लगता हैं। जबकि परिवर्तन विकास की संभावनाएंँ सही दिशा और दर्शन खोज लेती हैं। आजादी की अवधारणा कहती है कि जो आदमी आत्मविश्वास एवं अभय से जुड़ता हैं। वह अकेले ही अनूठे कीर्तिमान स्थापित करने का साहस करता हैं। समय से पहले समय के साथ जीने की तैयारी का दूसरा नाम हैं। स्वतंत्रता का बोध होना। दुनिया का कोई सिकंदर नहीं होता, वक्त सिकंदर होता हैं। इसलिए जरूरी है कि हमें वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने सीखना चाहिए। हमें राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता और आत्मनिर्भरता को स्थापित करने के लिए समस्या के मूल को पकड़ना चाहिए। नरेंद्र मोदी अमृत महोत्सव के तहत चलने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से इन्हीं समस्याओं के मूल को पकड़ने के लिए प्रयासरत दी रहें हैं। फूल पत्तों को सीचने के बजाय उसके जड़ को सीचने में लगे हैं। ताकि आने वाली नई पीढ़ियाँ समस्या से मुक्त होकर जीवन जी सकें। अमृत महोत्सव का उत्सव मनाते हुए यही कामना है कि एक के लिए सब और सब के लिए एक की विकास की गंगा बहाया जाय। आजादी का सही मायने में अर्थ है कि स्वयं की पहचान, सुषुप्त अवस्था को जागृत करना, आत्मनिर्भरता और समय के साथ पुरुषार्थी जीवन जीने का प्रयास हैं। इन्हीं चीजों को मुकाम तक पहुंँचाने के लिए अमृत महोत्सव के माध्यम से गहन देशव्यापी अभियान है जो नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करके एक जनआंदोलन में परिवर्तन करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। अमृत महोत्सव के माध्यम से किये गए छोटे-छोटे स्थानीय स्तर के कार्य व परिवर्तन राष्ट्रीय हित में लाभकारी साबित होंगे।

     अतः हम सभी को अमृत महोत्सव के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए राजनीति से ऊपर उठकर इस जन्मोत्सव को बनाना चाहिए। क्योंकि यह आत्मनिर्भरता जनता के लिए हैं। यह सिर्फ सरकार का उत्सव नहीं हैं।

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