What is Globalisation
वैश्वीकरण (भूमण्डलीकरण) का परिचय –
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दुनिया के देश एक-दूसरे से आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं तकनीकी रूप से आपस में जुड़े होते हैं। अर्थात् विभिन्न देशों के बीच संबंधों में तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को ही वैश्वीकरण (Globalisation) की संज्ञा दी जाती है।
यह विश्व अर्थव्यवस्था का विस्तार हैं। यह विश्वव्यापी सामाजिक सम्बन्धों का ऐसा गहनीकरण है कि स्थानीय तथा दूरस्थ घटनाएंँ एक-दूसरे को नजदीकीकरण को बढ़ावा देती हैं। यह समय और दूरी को मिटाता हैं। यह एक ऐतिहासिक प्रक्रिया हैं। यह आधुनिकता का अनिवार्य साथी और सहयोगी हैं। यह विश्व के एक हिस्से के विचारों को दूसरे हिस्से में पहुंँचाती हैं। पूँजी को एक जगह से दूसरे जगह ले जाती हैं। वस्तुओं और सेवाओं को विश्व के अन्य भागों में उपलब्ध कराती हैं।
ये सब इसलिए संभव होता है कि दुनिया का हर मानव व नागरिक स्वतंत्रता और समानता की वकालत करता हैं। स्वतंत्रता और समानता दो ऐसे वरदान है जिनकी प्रत्येक व्यक्ति पाने की कामना करता हैं। इसे 1776 के अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा व 1789 के फ्रांस के राज्य क्रांति के बाद फ्रांस की संसद द्वारा अपनाई गयी मानव व नागरिक के अधिकारों की घोषणा में देखा जा सकता हैं। उक्त दोनों घोषणाओं में स्वतंत्रता और समानता का समागम देखने को मिलता हैं। उसी वक्त से स्वतंत्रता और समानता को सम्पूरक अवधारणाएंँ माना जा रहा हैं।
भारत के संविधान में भी स्वतंत्रता और समानता दोनों प्रमुख मूल्यों के रूप में शामिल किया गया हैं। स्वतंत्रता के बिना समानता और समानता के बिना स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं। ये दोनों एक-दूसरे का पूरक हैं। चूँकि इन दोनों वरदानों में मानव का सम्पूर्ण जीवन समाहित हैं। चाहे वह सामाजिक क्षेत्र हो, सांस्कृतिक क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र हो या राजनीतिक क्षेत्र हो। इसके अलावे इन वरदानों को सभी स्त्तरो-स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर संचालित होना चाहिए।
स्वतंत्रता व समानता को प्राप्त करने के लिए चलने वालें आंदोलनों ने राष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के संचालन को जन्म दिया। इन्हीं आंदोलनों ने स्वतंत्रता व समानता के सार्वजनिक भौमीकरण की कामना की, जिसने भूमण्डलीकरण का नाम धारण कर लिया। मुख्य बात यह है कि विश्वव्यापी स्तर पर सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में लोगों की सतत बढ़ती हुई भागीदारी से इन दोनों स्वतंत्रता और समानता का बहुत उत्तम संश्लेषण हुआ।
अर्थ व प्रकृति –
20वीं सदी के अंतिम चरण में विश्वव्यापी स्तर पर उदारीकरण की एक लहर चल पड़ी। इस लहर ने प्रादेशिक और राष्ट्रीय पहचान को धूमिल करने लगा एवं व्यापार, वित्त व सूचना का ऐसा एकीकरण होने लगा कि, इस एकीकरण को Globalisation कहा जाने लगा। भारत में भी तत्कालीन प्रधानमंत्री पी॰ वी॰ नरसिन्हा राव ने इस उदारीकरण को अपनाएँ बिना नहीं रह सकें।
इसी कालखण्ड से समरूपी विश्वव्यापी बाजार व संस्कृति का उदय हुआ, स्थानीय व सार्वभौमिक बिंदुओं का समागम होने लगा। इस संबंध में रॉबर्ट्सन ने कहा कि विशिष्टीकरण का सौर्वभौमीकरण या सौर्वभौमवाद का विशिष्टवाद हैं। अर्थात् जो स्थानीय हैं, वह सौर्वभौम हैं और जो सौर्वभौम हैं, वह स्थानीय हैं। इससे दूरियांँ मिट गयी, जिससे सारा विश्व एक भूमण्डलीय गांँव (Global Village) में बदल गया।
यातायात, संचार व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन इतना होने लगा कि दूर-दूर के स्थानों को एक-दूसरे के निकट ला दिया। पूँजी के मुक्त प्रवाह ने आर्थिक बंधन को तोड़ दिए। यहांँ तक कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदानो ने लोगों की जीवन-शैली को भी बदल दिया।
इस संदर्भ में ब्रिटिश प्रो॰ एन्थोनी गिडिंस ने कहा कि भूमण्डलीकरण विश्वव्यापी सामाजिक संबंधों का गहनीकरण है जो दूर-दूर स्थित जनसंख्या को एक-दसरे को इस तरह जोड़ता है कि बहुत दूर पर होने वाली घटनाओं का स्थानीय घटनाओं पर तथा स्थानीय घटनाओं का मीलों दूर पर होने वाली घटनाओं पर प्रभाव पड़ता हैं।”
यह भी सत्य है कि Globalisation कोई नई या अद्भुत नहीं हैं। प्राचीन समय में भी यह अपने तत्कालीन परिवेश में मौजूद थी। प्राचीन काल में भी विश्व के लोग अपने मत, धर्म, व्यापार को फैलाने के लिए एक-दूसरे देश में जाया करते थे। ब्रिटेन के बाजारों में भारतीय माल बिकता था, फारस व चीन के लोग दूसरे देशों में जाकर अपने दार्शनिक ज्ञान को प्रचार-प्रसार करते थे। कई लोग अपनी कला व संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते रहते थे।
इस क्रम में कोलम्बस स्पेन से चलकर अमेरिका पहुंँच गया था। यूरोप के कई उत्साही व्यापारी अफ्रीका, एशिया व लैटिन अमेरिका तक का भ्रमण कर अपने उद्देश्यों तक पहुंँचने की भी सफल कोशिश की थी। इस प्रकार विश्व के विभिन्न जातियों के लोगों के बीच यह अंतः क्रिया की प्रक्रिया चलती रही। हालांकि यह प्रक्रिया धीमी थी। लेकिन वहीं अंतः क्रिया वर्तमान समय में तेज गति से चलने लगी हैं। जिसे हम वर्तमान में देख भी रहे हैं कि आज कैसे विज्ञान, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति की ओर अग्रसर हैं।
इस संदर्भ में रॉबर्ट ओ॰ क्योहेन, जोसेफ नाई जैसे विद्वानों ने कहा है कि पुराना वैश्वीकरण ‘दुर्बल व गहन’ था, जबकि वर्तमान वैश्वीकरण ‘मोटापा व विस्तृत’ हैं। Globalisation ऐसी व्यवस्था है जिससे मानव को अलग-थलग समुदायों का सदस्य नहीं समझा जाता जो संकीर्ण सूत्रों या कूटनीतिक संबंधों के माध्यम से बंँधे होते थे। अब सभी समुदाय वैश्विक विषयों पर प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
Globalisation (वैश्वीकरण) के आयाम –
-
सामाजिक एवं संस्कृति आयाम –
Globalisation के कारण लोगों के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में बदलाव निश्चित रूप से आ रहा हैं। इस वैश्वीकरण के युग में अब पुरानी व्यवस्थाएंँ या संस्थाएंँ सतत रूप से कमजोर होती जा रही हैं, उनकी जगह पर नई पहचान व मान्यताएंँ आ रही हैं। लेकिन यह किसी राष्ट्र या समुदाय की धरोहर नहीं हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के नये आविष्कारों ने लोगों के जीवन के सांस्कृतिक आयामों को बदल दिया हैं।
फलतः लोग अब नये रूप में दिखने के लिए अमेरिकी वस्त्र पहनते हैं, चीनी भोजन करते हैं, फ्रेंच पेय पदार्थों का सेवन करने लगे हैं, इंग्लिश पॉप संगीत सुनने लगे हैं आदि। इस आधार पर कहा जा सकता है कि सहभागी मूल्यों व आदर्शों पर आश्रित एक भूमण्डलीय समाज की रचना हो रही हैं। लेकिन दूसरी ओर कहा जा सकता है कि स्वदेशी के कट्टरपंथियों के सामने एक गंभीर समस्या पैदा कर दी हैं भूमण्डलीकरण ।
Globalisation के आर्थिक आयाम में विश्व के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हो जाता हैं। इसमें कुछ आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं तो कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं व ताकतवर देशो द्वारा जबरन लाद दिये जाते हैं। ये प्रवाह कई किस्म के हो सकते हैं, जैसे वस्तुओं, पूँजी, जनता अथवा विचारों का प्रवाह। Globalisation के कारण पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में बढ़ोतरी हुई हैं। पहले की अपेक्षा अब आर्थिक प्रभाव पर प्रतिबंध हटा लिया गया हैं। जिसके कारण पूंँजी व धन आदि का आवाजाही बढ़ गया हैं।
ये सब होने से दुनिया के देशों को बड़ा बाजार मिल गया हैं। व्यवहारिक रूप में अगर हम देखते हैं तो पाते हैं कि धनी व समृद्ध देश के निवेशकर्त्ता अपना धन व पूँजी किसी दूसरे देश में निवेश करते हैं। वह भी खासकर विकासशील देश में अधिक निवेश करने का विचार रखते हैं। क्योंकि विकासशील देश में मुनाफा ज्यादा प्राप्त करने की आशा रहती हैं। अब विचारों के सामने राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रवाह अवाधगति से चलता रहा हैं।
विचारों के संदर्भ में हम Internet और Computer को देख सकते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जिस सीमा तक वस्तुओं और पूंँजी का प्रभाव बढ़ा हैं, उस सीमा तक लोगों की आवाजाही नहीं बढ़ सकी। क्योंकि विकसित देश अपनी वीजा-नीति को पेंचीदा बना रखा हैं। उन्हें डर है कि विकासशील देश के लोग हमारे विकसित देश में आकर कहीं नौकरी व अन्य धंधे न हथिया लें।
Globalisation का उदारीकरण से स्वाभाविक मेल हैं क्योंकि पूंँजी का प्रवाह हो रहा है तथा दुनिया के देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियांँ व निगम अपना जाल फैला रहे हैं। हालांँकि कई आधारों पर Globalisation की आलोचना भी की जाती रही हैं।
राजनीति के क्षेत्र में बहुमण्डलीकरण का अपना महत्व है क्योंकि इसने राष्ट्र-राज्य व्यवस्था को प्रभावित किया है जो 1648 की वेस्टफेलिया संधियों के समय से चली आ रही हैं। Globalisation ने राज्य की सम्प्रभुता के बाहरी पक्ष को अंकुशित किया है तथा लोक कल्याणकारी राज्य के अंत की ओर संकेत किया हैं। अर्थात् इसके कारण राज्य की क्षमता यानी सरकारों को जो करना है उसे करने की ताकत में कमी आती जा रही हैं।
अब पूरी दुनिया में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा अब पुरानी पड़ती जा रही है और इसके स्थान पर न्यूनतम हस्तक्षेप की नीति लायी जा रही हैं। Globalisation के कारण राज्यों के पास अब बहुत काम नहीं हैं। कुछ काम ही हैं, जैसे कानून और व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना। अर्थात् लोक कल्याणकारी राज्य की जगह अब बाजार, आर्थिक व सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक हैं।
दूसरी ओर देखते हैं तो पाते हैं कि इस युग में भी राज्य अपनी ताकत और मुद्दों के बल पर मजबूती से राष्ट्रहित में कार्य कर रहा हैं। सूचना एवं प्रौद्योगिकी ने हर राष्ट्र को ताकतवर बनाया हैं। कोई भी विकसित व ताकतवर देश अब मनमानी नहीं कर सकता, क्योंकि कई प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय संगठन और अन्तर्राष्ट्रीय कानून बने हैं। जिसके कारण उनके मनमानी पर रोक लगाया जा सकता हैं। जैसे – संयुक्त राष्ट्र संघ (UN), यूरोपीयन यूनियन (EU), संघाई सहयोग संगठन (SCO), विश्व व्यापार संगठन (WTO), आदि आर्थिक व राजनीतिक संगठनों की स्थापना हुई हैं।
ऐसा नहीं है कि Globalisation का प्रभाव केवल आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में पड़ता हैं। इसका प्रभाव हमारे सांस्कृतिक आयामों पर भी पड़ता हैं। पहले हमारी आवश्यकताओं और पसंद के अनुसार बाजार में सामानों की आपूर्ति होती रहती थी। लेकिन अब Globalisation के दौर में हमारी आवश्यकताओं व पसंद की चीजों का बाजार तय करता हैं। हमें बाजार के अनुसार ही अब अपनी आवश्यकताओं और पसंद को अपनाना पड़ता हैं।
यह प्रक्रिया दुनिया के देशों की संस्कृतियों का खतरा पहुंँचायी हैं। इस व्यवस्था में संस्कृति समरूपता लाने की कोशिश होती हैं। चूंँकि दुनिया के बाजार में एक तरह की चीज उपलब्ध करायी जा रही हैं। उसे ही अपनाना पड़ता हैं। यह भी हो रहा है कि विश्व-संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति को लादा जा रहा हैं। यह आज दिखने भी लगा हैं। क्योंकि आर्थिक और रणनीतिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम प्रभुत्व वाली संस्कृति पर अपना छाप छोड़ती है और दुनिया में वैसा दिखने लगता हैं।
दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि वैश्विक सांस्कृतिक प्रभाव सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक ही नहीं होता हैं। चूंँकि संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं हैं। हर संस्कृति हर बाहरी प्रभावों को स्वीकार करते रहती हैं। कुछ बाहरी प्रभाव नकारात्मक होते हैं। क्योंकि इससे हमारी पसंदो में कमी आती हैं।
जैसे– बर्गर और नीली जींस का नजदीकी रिश्ता अमेरिकी जीवन शैली से हैं जो ये पूरी दुनिया में उपलब्ध हैं। वहीं दूसरी ओर देखें तो पाते हैं कि बर्गर मसाला-डोसा का विकल्प नहीं हैं। इसलिए बर्गर से मसाला-डोसा का वस्तुतः कोई खतरा नहीं हैैं। हुआ इतना है कि हमारे भोजन की पसंद में एक चीज और शामिल हो गई हैं।
वहीं दूसरी तरफ देखते हैं तो पाते हैं कि
नीली जींस खादी के कुर्ते के साथ खूब चलन में हैं। अब यह भी देखने को मिलता है कि हमारा खादी का कपड़ा (कुर्त्ता) अमेरिकी नीली जींस के साथ अमेरिका में भी खूब चलने लगा हैं। हम कह सकते हैं कि
वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होते जा रही हैं। इस प्रक्रिया को
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण कहा जाता हैं। उपरोक्त अध्ययन से हम पाते हैं कि सांस्कृतिक प्रभाव एकतरफा नहीं होता हैं। लेकिन
Globalisation की वजह से आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आयामों के साथ-साथ सांस्कृतिक आयामों को भी प्रभावित करती हैं।
इन्हें भी पढ़ें:- 👇
Post Views: 32